नेपाल बॉर्डर पर हिंदुस्तान के आखिरी गांव में चुनावी माहौलः न बैनर, न होर्डिंग; पब्लिक को प्रत्याशी तक पता नहीं; महिला बोली-सिर पर गठरी ही हमारी जिंदगी
नेपाल बॉर्डर पर हिंदुस्तान के आखिरी गांव में चुनावी माहौलः न बैनर, न होर्डिंग; पब्लिक को प्रत्याशी तक पता नहीं; महिला बोली-सिर पर गठरी ही हमारी जिंदगी
सिर पर गठरी ही हमारी जिंदगी है। यहां न बैलगाड़ी है, न ऑटो-टैंपो। दिनभर में कहीं भी जाना हो पैदल चलते हैं। मजदूरी ही हमारा रोजगार है। गाय पालते हैं, तो दूध बेचकर घर का खर्च चलता है। चुनाव होंगे और कोई कहेगा, तो वोट डाल देंगे। कौन-कौन प्रत्याशी है? हमें पता नहीं है।
47 साल की दीपमाला सिर पर गठरी लादे यह कहते हुए चली जाती हैं। दीपमाला नेपाल बॉर्डर पर पीलीभीत जिले में हिंदुस्तान के आखिरी गांव कुतिया कवर में रहती हैं। यह पीलीभीत जिला मुख्यालय से करीब 85 किमी. दूर है।
देश में लोकसभा चुनाव की हलचल है। लेकिन, हिंदुस्तान के इस आखिरी गांव में चुनाव का अता-पता नहीं है। सड़कों पर न बैनर है, न होर्डिंग। यहां आबादी को प्रत्याशियों के बारे तक में पता नहीं है। उन्हें यह भी नहीं पता कि वरुण गांधी का टिकट कट चुका है।
पीलीभीत में 19 अप्रैल को पहले चरण में वोटिंग है। चुनावी माहौल को समझने दैनिक भास्कर की टीम इस गांव पहुंची...
दोपहर की धूप चढ़ी हुई थी। कुतिया कवर गांव की चेकपोस्ट पर फोर्स के जवान हाथ में हथियार लिए पेड़ की छांव के नीचे बैठे थे। पास में ही SSB के जवान और इंटेलिजेंस यूनिट टीम हाथ में डायरी लेकर आस-पास के लोगों के नाम-पता नोट कर रही है। यूपी पुलिस के जवान भी तैनात हैं
भारत और नेपाल सरहद की यह मेन चेकपोस्ट है। यहां से नेपाल सीमा शुरू हो जाती है। मकान इस तरह बने हैं कि पता ही नहीं चलता कि कहां से बॉर्डर शुरू हो जाता है? दोनों देश के लोग आराम से सरहद पार करके इधर-उधर आते जाते हैं। खरीदारी करते हैं और लौट जाते हैं।
न सीएम न पीएम की चर्चा, लोग बोले-हमें तो बस वोट देना है चुनाव से जुड़ा सवाल पूछने पर इस गांव में रहने वाली 36 साल की सैतार देवी कहती हैं कि अभी तो बस यही पता है कि 19 तारीख को वोट डाले जाएंगे। हमें तो बस वोट देना है। कौन-कौन प्रत्याशी है? कुछ पता नहीं है। हमारे घर के पुरुष जिसको कहते हैं उस निशान पर वोट डाल देते हैं।
सैतार देवी की बॉर्डर इलाके में छोटी सी दुकान है। पति मजदूरी करते हैं। वह कहती हैं कि मजदूरी करके ही पेट पालना है। यही हमारी जिंदगी है। क्या पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट कटने की उन्हें पता है? इस सवाल पर वह इनकार कर देती हैं। थोड़ी जमीन है। उसमें गेहूं की फसल होती है। उसी से पूरे साल का राशन मिल जाता है।
उनकी दुकान में ही बैठे एक बुजुर्ग कहते हैं कि बॉर्डर के सटे इलाकों में बस वोट देना ही चुनाव होता है। जब उनसे कैमरे में बात करने की कही, तो वह मना करने लगे। हमने कैमरा हटा दिया। कहा, कहिए आप क्या कहना चाहते हैं? फिर उन्होंने बात की। कहा कि हमारे यहां कभी सीएम या पीएम नहीं आए। बस हम उन्हें वोट देते हैं। सांसद भी कभी आ गए, तो बड़ी बात है। रोजगार के साधन नहीं हैं। 10 सालों में हमारी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
सवाल मत पूछिएगा... यहां इंटेलिजेंस के लोग नजर रखते हैं नेपाल बॉर्डर के करीब घर में ही 23 साल की स्मिता अपनी भाभी सुनीता के साथ एक कमरे में बैठी हुईं मिलीं। हमने बात करने की कोशिश की, तो उनकी नजर हमारे हाथ के माइक पर पड़ी। वह तुरंत बोल पड़ी, चुनाव को लेकर कुछ मत पूछिएगा। क्योंकि, यहां इंटेलीजेंस के लोग नजर रखते हैं। हम किससे बात करते हैं? किससे मिलते हैं? उन्हें सब पता चल जाता है। फिर आकर पूछते हैं।
स्मिता बीए पास हैं। पिता की मौत हो चुकी है। कहने लगीं कि हम बीड़ी बनाकर परिवार चलाते हैं। वह भी सुबह-सुबह बनाई जाती है। दोपहर में हवा और धूप तेज होती है तो बीड़ी नहीं बन पाती। दिनभर में 60 से 80 रुपए की आमदनी हो जाती है। इससे रोजमर्रा के खर्च चल जाते हैं।
जैसे दूसरे शहरों और कस्बों में चुनाव का माहौल होता है। हमारे यहां ऐसा नहीं है। कई बार साल-साल पीलीभीत जिले में जाए हुए हो जाते हैं। बस यह मान लीजिए कि हमारे सिर पर छत पक्की है। गांव तक काली सड़क (पक्की सड़क) बनी है। हमारे लिए तो यही बहुत है।
नेपाल बॉर्डर का पता ही नहीं चलता है
यहां से हम कुछ कदम आगे गए तो 48 साल के नजल एक छोटे से कच्चे घर के बाहर बैठ मिले। उनकी दो बेटियां भी बाहर ही बर्तन साफ कर रहीं थीं। हमें पहले देखकर नजल चुप रहे। फिर कहा कि यह नेपाल है। आप हिंदुस्तान से यहां आ गए।
दरअसल, सरहद के नाम पर कुछ भी नहीं है। पता ही नहीं चलता कि कब आप नेपाल और कब हिंदुस्तान में आ गए। नजल से हमने चुनाव को लेकर बात करनी चाही, तो कहते हैं कि जिसका आधार कार्ड होता है। वही वोट डाल पाता है।
नेपाल और हिंदुस्तान के रिश्तों को लेकर वह कहते हैं कि बस समझ लीजिए कि सरहद कहने के लिए है। हमारा खान-पान सब एक जैसा है। अब देखिए हमारे घर पर पीलीभीत से लोग आए हैं। खुशनुमा माहौल रहता है यहां। कभी झगड़ा नहीं होता।
नेपाल बॉर्डर का पता ही नहीं चलता है
यहां से हम कुछ कदम आगे गए तो 48 साल के नजल एक छोटे से कच्चे घर के बाहर बैठ मिले। उनकी दो बेटियां भी बाहर ही बर्तन साफ कर रहीं थीं। हमें पहले देखकर नजल चुप रहे। फिर कहा कि यह नेपाल है। आप हिंदुस्तान से यहां आ गए।
दरअसल, सरहद के नाम पर कुछ भी नहीं है। पता ही नहीं चलता कि कब आप नेपाल और कब हिंदुस्तान में आ गए। नजल से हमने चुनाव को लेकर बात करनी चाही, तो कहते हैं कि जिसका आधार कार्ड होता है। वही वोट डाल पाता है।
नेपाल और हिंदुस्तान के रिश्तों को लेकर वह कहते हैं कि बस समझ लीजिए कि सरहद कहने के लिए है। हमारा खान-पान सब एक जैसा है। अब देखिए हमारे घर पर पीलीभीत से लोग आए हैं। खुशनुमा माहौल रहता है यहां। कभी झगड़ा नहीं होता।
ज्योति कहती हैं कि नेपाल और हिंदुस्तान में बहुत अंतर है। हमारे यहां सड़कें कच्ची हैं। जैसे ही हिंदुस्तान में पैर रखते हैं, तो काली सड़क आ जाती है। वहां पक्के मकान हैं। हमारा मार्केट हिंदुस्तान में हैं। अब थोड़ा-थोड़ा पता चलने लगा है कि हिंदुस्तान में चुनाव होने हैं। जिसमें प्रधानमंत्री चुने जाएंगे। यह बात हमारे नेपाल के लोगों को भी पता है। वह सिर्फ चुनाव में यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि किसकी सरकार बनेगी।
तृप्ति बोलीं- हमें गैस सिलेंडर तक नहीं मिला बॉर्डर के पास रहने वाली 52 तृप्ति बाजार से सब्जी लेकर लौट रहीं थीं। वह कहती हैं कि यहां तो बस वही रोज का खाना कमाना चलता है। यही हमारी जिंदगी है। सरकारी योजनाओं के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि हमें गैस सिलेंडर तक नहीं मिला। हम चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं। 4 किलो राशन में बाजरा मिलता है। क्या इससे पूरे महीने का काम चल जाएगा?
अफसरों से आयुष्मान कार्ड योजना के बारे में जब पूछते हैं, तो वह कहते हैं, जब बीमार पड़ोगी, तो लाभ मिलेगा। तृप्ति उम्मीद भरे अंदाज में कहती हैं कि साल में अगर एक-दो बार भी नेता आने लगे तो हमारे इलाके का हाल थोड़ा सुधार जाएगा। कभी-कभी वोट के लिए नेता आते हैं, फिर कोई झांकता तक नहीं है।
सरहद पार से शाम को घुमने आते हैं लोग
बॉर्डर से 2 किमी दूर मेन बाजार में 35 साल के असीम मंडल परिवार के साथ चाऊमीन का स्टॉल चलाते हैं। चुनावी महौल के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि अभी तो कुछ नहीं है। वोटिंग से 3-4 दिन पहले लोग ढोल नगाड़ों के साथ वोट मांगते नजर आएंगे। असीम कहते हैं, यहां माहौल हमेशा खुशनुमा रहता है। शाम होते ही नेपाल के नागरिक चाऊमीन का स्वाद चखने आते हैं।
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February 08, 2024
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