भास्कर एक्सक्लूसिव राजस्थान की 25 सीटें जीतने में भाजपा के सामने 5-चुनौतीः गठबंधन और बगावत ने बढ़ाया ब्लड प्रेशर; कांग्रेस में भितरघात के इंफेक्शन से सियासी बुखार
भास्कर एक्सक्लूसिव राजस्थान की 25 सीटें जीतने में भाजपा के सामने 5-चुनौतीः गठबंधन और बगावत ने बढ़ाया ब्लड प्रेशर; कांग्रेस में भितरघात के इंफेक्शन से सियासी बुखार
होली के साथ रंग-बिरंगा फाल्गुन का महीना बीत गया है। चैत्र माह की दस्तक के साथ दोनों दल सियासी बुखार की चपेट में हैं।
राजनीतिक रणनीतिकार नब्ज पकड़े हुए हैं, लेकिन ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा है। किसी की भी हालत गंभीर नहीं है। इसके बावजूद हालात चिंताजनक जरूर है।
सियासी पारे को कम करने के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेता बार-बार ठंडे पानी की पट्टियां कर रहे हैं, लेकिन नए-नए विवादों से टेंपरेचर के साथ अब ब्लड प्रेशर भी बढ़ने लगा है।
पूरे राजस्थान में एक ही सवाल है... क्या पिछले दो बार से अपना खाता नहीं खोल पाने से असहनीय पीड़ा झेल रही कांग्रेस को इस बार दर्द से मुक्ति मिलेगी? खाता खुलेगा क्या? भाजपा हैट्रिक मार पाएगी क्या?
और एक खास सवाल... क्या राजस्थान का चुनाव हर बार की तरह है?
राजस्थान की राजनीति का हेल्थ बुलेटिन क्या संकेत देता है? इसे कुछ यूं समझते हैं-
पहले संक्षेप में...
* भाजपा की हालत अभी स्थिर है, लेकिन चूरू, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, झुंझुनूं, नागौर, दौसा, सवाईमाधोपुर-टोंक, सीकर सहित कई सीटों पर राजनीतिक बेचैनी अभी भी बनी हुई है। इससे पार्टी और प्रत्याशियों की सांसें-ऊपर नीचे हो रही हैं।
* कांग्रेस में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, कुछ राहत दिख रही है। कुछ जगहों पर 'एंटीबायोटिक दवाएं' असर कर रही हैं। फिलहाल सभी महत्वपूर्ण पैरामीटर स्थिर हैं। कोटा, राजसमंद, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, पाली, उदयपुर, अजमेर जैसी सीटों पर संक्रमण नियंत्रण से बाहर है। ऐसे में अभी कुछ भी ठीक से कहा नहीं जा सकता।
* अन्य दलों में RLP और CPM लू के शिकार हैं। गठबंधन की वजह से वेंटिलेटर पर आ गए हैं, लेकिन सेहत में कितना सुधार होगा, अभी देखना होगा।
* कांग्रेस ने बांसवाड़ा से प्रत्याशी की घोषणा को रोक रखा है। BAP से गठबंधन को लेकर वार्ता अंतिम चरण में है, लेकिन कोई फैसला होने से पहले राजकुमार रोत ने निर्दलीय पर्चा भर दिया। वहीं, महेंद्रजीत सिंह मालवीय के भाजपा में शामिल होने के बाद खाली हुई विधानसभा सीट बागीदौरा में उपचुनाव हैं। BAP ने यहां से जयकृष्ण पटेल को उतार दिया है। BAP की शर्त है कि गठबंधन हुआ तो कांग्रेस को विधानसभा सीट भी छोड़नी होगी।
अब समझते हैं, किस सीट पर क्या हालत और क्या चुनौती
क्या ये चुनाव हर बार जैसा ही है?
नहीं। हर बार की तुलना में इस बार चुनाव बेहद रोचक हो गया है। इसका मुख्य कारण कांग्रेस की रणनीति है। पार्टी ने सभी नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। भाजपा की चुनौती को इस रूप में देख सकते हैं कि सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाली भीलवाड़ा सीट पर सबसे आखिरी में उम्मीदवार उतारा गया है, यानी भाजपा के लिए चिंता खड़ी कर दी है।
दूसरा, जातिगत समीकरण बिठाए गए हैं। इससे चुनाव रोचक और रोमांचक स्थिति में पहुंच गया है। कांग्रेस से ब्राह्मण नाराज हो रहे थे तो आखिर में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को भीलवाड़ा से उतारकर शिकायत दूर करने का प्रयास किया। दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने सात सीटों पर आमने-सामने जाट समाज से ही प्रत्याशी उतारे हैं।
क्या कांग्रेस के लिए माहौल अच्छा कहा जा सकता है?
नहीं। कांग्रेस की शुरुआती तैयारी और रणनीति दोनों प्रभावित कर रही थीं। बाद में राजसमंद व जयपुर के प्रत्याशियों के टिकट लौटाने से सवाल खड़े हो गए कि प्रत्याशियों को विश्वास में लिया भी गया था या नहीं? दोनों सीटों पर नए प्रत्याशी उतारने पड़े। वहीं, कोटा में भले ही प्रहलाद गुंजल की एंट्री हो गई, लेकिन वहां मंच-पर जिस तरह से सिर फुटव्वल हुई। उससे लगता नहीं है कि कांग्रेस के नेता भाजपा से आए लोगों को पचा पा रहे हैं।
कांग्रेस के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। पहली दो लिस्ट में जिस तरह गणित बैठाकर उम्मीदवारों का चयन किया, बाद में वैसा नहीं दिखा। ऐसी गतिविधियों से साफ लगता है कि पार्टी में सब-कुछ ठीक नहीं है।
फिर तो भाजपा के लिए अच्छा संकेत है?
नहीं। भाजपा दो बार से लगातार क्लीन स्वीप कर रही है। इस बार पार्टी में कई जगह स्थितियां खराब हैं। RLP और CPI का कांग्रेस से गठबंधन भाजपा के लिए चुनौती है। उधर, आदिवासी दल BAP से बातचीत चल रही है।
भाजपा के कई नेता बागी हो गए हैं। इनमें चूरू से राहुल कस्वां तो पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आ गए और टिकट ले आए। बाड़मेर-जैसलमेर में निर्दलीय रवीन्द्र सिंह भाटी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के लिए चुनौती बन गए हैं। जोधपुर में भी गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने पहले जैसी स्थिति नहीं है।
चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या है?
राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे छोड़ दें, तो राजस्थान के स्तर पर भाजपा के पास एकाध मुद्दे ही हैं। पेपर लीक प्रकरणों में चल रही धरपकड़ के आधार पर पिछली कांग्रेस सरकार को निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही, ERCP को जमीन पर लाने में भी तेजी दिखाई जा रही है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों से भाजपा दूर है, क्योंकि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार है।
भाजपा प्रत्याशी पूरी तरह से नरेंद्र मोदी और देश के लिए उनकी ओर से किए जा रहे भविष्य के वादों के सहारे है। राम मंदिर, कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे मुद्दे ही उनके लिए निर्णायक हैं।
इधर, कांग्रेस जरूर राजस्थान के मुद्दों पर भाजपा की भजनलाल सरकार को घेरने में लगी है। कांग्रेस के नेता प्रदेश की सरकार को हर निर्णय के लिए आलाकमान की ओर देखने, कांग्रेस राजस्थान में पेट्रोल-डीजल के दाम पड़ोसी राज्यों के जैसे नहीं कर पाने और ERCP के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ करने के आरोपों के सहारे घेर रहे हैं।
वहीं, कांग्रेस विपक्ष को दबाने के लिए ED, CBI का इस्तेमाल करने, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी को काबू नहीं कर पाने सहित राष्ट्रीय मुद्दों पर मोदी की विफलताओं को भी मुद्दा बना रही है।
क्या विपक्ष आक्रामक है? भाजपा को घेर पा रहा है?
नहीं। कांग्रेस की ऐसी कोई रणनीति नजर नहीं आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का फोकस जालोर-सिरोही सीट है। हालांकि, वे राजस्थान में भी दौरे कर रहे हैं। बाकी नेताओं की अभी खास सक्रियता नहीं दिखी है। कांग्रेस आलाकमान और यहां से सांसद सोनिया गांधी ने मैनिफेस्टो जारी करने के लिए राजस्थान को चुना है। पार्टी तैयारी में जुट गई है। कांग्रेस की 6 अप्रैल के बाद ही राजनीतिक गतिविधियां तेज होंगी।
तो क्या भाजपा के नेता सक्रिय हैं?
हां, कांग्रेस से पहले यहां भाजपा आलाकमान सक्रिय हो गया है। प्रदेश के नेताओं में अभी CM भजनलाल हर तरह से जुटे हैं। अमित शाह ने एक दिन पहले ही जयपुर में पार्टी नेताओं की मीटिंग ली और सीकर में रोड शो किया। आज अमित शाह जोधपुर में चुनावी रैली कर रहे हैं और मोदी की कोटपूतली में 2 अप्रैल को जनसभा होगी।
कांग्रेस की पांच चुनौतियां क्या हैं?
* मोदी के मुकाबले बड़े कद वाले नेता का अभाव : कांग्रेस के पास मोदी जैसा बड़ा कद रखने वाले नेता का अभाव है। प्रचार की अग्रेसिव रणनीति नहीं होना भी कांग्रेस के लिए चुनौती बना हुआ है।
* कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरना: भाजपा के दो क्लीन स्वीप से निराश कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरना।
* भितरघात का खतरा : गठबंधन और दूसरी पार्टियों से कांग्रेस में शामिल हुए नेताओं को टिकट मिलने से नाराज धड़े को राजी करना और गुटबाजी को कंट्रोल में रखना, जिससे भितरघात का खतरा टल सके।
* कलह रोकना व नेताओं को बराबर सक्रिय करना : गहलोत, सचिन पायलट जैसे सभी प्रभावशाली नेताओं को चुनाव प्रचार में बराबर सक्रिय करना, नेताओं के बीच आपसी कलह को भी रोकना। इससे जनता और कार्यकर्ताओं में एकजुटता का संदेश जाएगा।
* वोट शेयर बढ़ाना : 2009 में कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 फीसदी था और भाजपा का 36.6 फीसदी। 2014 में कांग्रेस का वोट शेयर 30.7 फीसदी और 2019 में 34.2 फीसदी रहा।
भाजपा की पांच चुनौतियां क्या हैं?
* भितरघात का खतरा : बाड़मेर, चित्तौड़गढ़ जैसी कई सीटों पर भितरघात रोकना भाजपा के लिए चुनौती रहेगा। इन सीटों पर भाजपा नेताओं के बीच विधानसभा चुनाव के दौरान पनपी आपसी कड़वाहट सामने आ रही है।
* गठबंधन के बड़े वोट बैंक में सेंध लगाना : कांग्रेस के RLP और CPI के साथ गठबंधन करने से वोट बैंक बड़ा हो गया है। वहीं, BAP से भी यदि गठबंधन हो जाता है, तो भाजपा को एक बड़े वोट बैंक में सेंध लगाने का फॉर्मूला ढूंढना
होगा।
* स्थानीय एंटी इनकम्बेंसी: 10 सालों से लगातार एक ही पार्टी के सांसद होने से स्थानीय एंटी इनकम्बेंसी भी दिख रही है। सांसदों की कार्यशैली को लेकर भी कार्यकर्ताओं की शिकायतें हैं।
* नेताओं की गुटबाजी : भाजपा में गुटबाजी अंदरखाने चल रही है। प्रदेश स्तर पर प्रभाव रखने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सक्रियता कम दिखाई दे रही है। गुटबाजी को रोकना होगा।
वोट शेयर में बढ़त बनाए रखना : गठबंधन और बगावत के चलते भाजपा को वोट शेयर में सेंध लगने की आशंका है। 2014 में करीब 55.6 फीसदी और 2019 में 58.4 फीसदी वोट शेयर था। इन आंकड़ों को बनाए रखना भी भाजपा के लिए चुनौती रहेगा।
RLP और अन्य छोटे दलों से किसे फायदा और क्या चुनौती? आमतौर पर माना जाता है कि अन्य दल कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाते हैं। अब कांग्रेस ने RLP और CPI के साथ गठबंधन कर लिया है, तो ये आपसी समर्थकों का एक बड़ा वोट बैंक बन गया है। इससे कांग्रेस गठबंधन को निश्चित रूप से फायदा मिलेगा।
यदि ये पार्टियां अपना प्रत्याशी उतारतीं तो कांग्रेस और इन दलों में वोट बैंक बंट जाता। गठबंधन की सीटों के अलावा अन्य सीटों पर इन पार्टियों के समर्थक एक जगह वोटिंग करेंगे तो भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। इस गठबंधन से भाजपा नुकसान होने की आशंका से घिर गई है।
कौन सी सीट पर सबसे ज्यादा नजर जालोर-सिरोही : पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव
गहलोत के चुनाव लड़ने के कारण। वैभव ने पिछला चुनाव जोधपुर सीट से लड़ा था और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से हार गए थे। नई सीट पर जोधपुर के मुकाबले चुनौतियां
कम हैं।
चूरू : मौजूदा भाजपा सांसद राहुल कस्वां का टिकट कटने से उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा और इस सीट पर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी। भाजपा ने यहां से टिकट पैरालिंपिक के गोल्ड मेडल विजेता देवेंद्र झाझड़िया को दिया है। वे इस चुनाव से ही राजनीति में उतर रहे हैं।
चित्तौड़गढ़ : यहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी
प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व मंत्री उदयलाल आंजना से है। जोशी को विधानसभा का निर्दलीय चुनाव जीतने वाले भाजपा के बागी चंद्रभान सिंह आक्या की नाराजगी परेशान कर सकती है।
नागौर : भाजपा की ज्योति मिर्धा को विधानसभा चुनाव में
हार मिलने के बाद फिर मौका दिया गया है। यहां कांग्रेस-RLP के साथ गठबंधन उनके लिए चुनौती होगा। RLP सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन किया था और ज्योति मिर्धा को हराया था।
झुंझुनूं : कांग्रेस ने विधायक बृजेंद्र ओला को मौका देकर भाजपा के शुभकरण चौधरी को अच्छी चुनौती दे दी है। इस सीट पर बृजेंद्र के पिता सीसराम ओला लगातार 5 बार सांसद रहे हैं।
टोंक-सवाई माधोपुर : भाजपा ने दो बार से लगातार जीत रहे सुखबीर सिंह जोनापुरिया को फिर टिकट दिया, लेकिन कांग्रेस ने विधायक हरीश मीना को टिकट देकर मुकाबला रोचक बना दिया है। भाजपा को गुर्जर वोट बैंक से तो कांग्रेस को मीणा वोट बैंक से फायदा मिलने की उम्मीद है।
कोटा : शांति धारीवाल के कट्टर राजनीतिक दुश्मन रहे प्रहलाद गुंजल को ही कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। गुंजल हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए। यहां से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भाजपा की टिकट पर मैदान में हैं। यहां धारीवाल और गुंजल के बीच का रसायन कांग्रेस का भविष्य तय करेगा।
बाड़मेर : भाजपा ने फिर कैलाश चौधरी को उतारा है, तो
कांग्रेस ने विधानसभा में बहुत करीब से हारे उम्मेदाराम बेनीवाल को मौका दिया है। यहां भाजपा के बागी होकर निर्दलीय विधानसभा चुनाव जीते रवींद्र सिंह भाटी ने इस लोकसभा चुनाव में निर्दलीय के रूप में पर्चा भरकर कैलाश चौधरी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है।
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February 08, 2024
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